असहयोग आंदोलन
असहयोग आंदोलन सितंबर 1920 में चलाया गया. इस आंदोलन को चलाने के पीछे कई अहम
कारण थे. सन 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा रौलट एक्ट पास किया गया जिसे भारतीय जनता ने 'काला कानून' की संज्ञा दी. रौलट
एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के जलियांवाला बाग में एक सभा बुलाई गई जिसमें हजारों की भीड़ जुटी.
वहां ब्रिटिश जनरल डायर भी अपनी टुकड़ी के साथ पहुंच गया और उसने निहत्थी जनता पर
गोलियां चलाने का आदेश दे दिया. जिस कारण हजारों की संख्या में मासूम बच्चे, स्त्रियां, पुरुष मारे गए.
ब्रिटिश सरकार के इस दुस्साहस से ब्रिटिश सरकार चौतरफा विरोध में घिर गई तथा गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरोध में सितंबर 1920 में असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी. असहयोग आंदोलन 1920 से लेकर 1922 तक चला.1922 में चौरा चौरी कांड के कारण गांधी जी को असहयोग आंदोलन को वापस
लेना पड़ा. अपने शुरुआती दौर में असहयोग आंदोलन चरम पर था तथा इसके अंतर्गत सरकारी
पदों का, स्कूल का, सरकारी अदालतों का बहिष्कार
करना, विदेशी वस्तुओं का परित्याग करना, शामिल था. लेकिन इस आंदोलन के
दौरान आंदोलनकारियों द्वारा चोरा चोरी नामक स्थान पर हिंसा की घटना हो गई उनके
द्वारा एक थानेदार और 21 सिपाहियों को जलाकर मार डाला
गया. असहयोग आंदोलन गांधी जी के अहिंसा के रास्ते को छोड़ने लगा था इसी कारण सन 1922 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया.
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