शिक्षा अनुसंधान का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार
शिक्षा का मुख्य
लक्ष्य बालकों के व्यवहार मे विकास एवं परिवर्तन करना है अनुसंधान तथा शिक्षण
क्रियाओं द्वारा इन लक्ष्यों की प्राप्ति की जाती है। शिक्षण की समस्याओं तथा
बालकों के व्यवहार के विकास सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन करने वाली प्रक्रिया को
शिक्षा अनुसंधान कहते है। इस प्रकार शिक्षा अनुसंधान के प्रमुख मानदण्ड अधोलिखित
हैं :-
- शिक्षा के क्षेत्र में नवीन ‘तथ्यों’ की खोज नवीन सिद्धान्तों तथा सत्यों का प्रतिपादन करना अर्थात् नवीन ज्ञान की वृद्धि करना।
- नवीन ज्ञान की शिक्षा के क्षेत्र में व्यावहारिक उपयोगिता होनी, चाहिए, जिससे शिक्षण अभ्यास में सुधार तथा विकास करके प्रभावशाली बना सकें।
- शिक्षा अनुसंधान की समस्या क्षेत्र-शिक्षण या बालक विकास होना चाहिए।
- शिक्षा अनुसंधान की समस्या का स्वरूप इस प्रकार हो जिसका प्रत्यक्षीकरण किया जा सकें तभी उसकी उपयोगिता हो सकती है।
शिक्षा-अनुसंधान
की परिभाषा
1. एफ0एल0 भिटनी के अनुसार- ‘‘शिक्षा-अनुसंधान का
उद्देश्य शिक्षा की समस्याओं का समाधान करके उनमें योगदान करना है जिसमे वैज्ञानिक
विधि, दार्शनिक विधि तथा चिन्तन का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक स्तर
पर विशिष्ट अनुभवों का मूल्यांकन और व्यवस्था की जाती है। इसके अन्तर्गत
परिकल्पनाओं का प्रतिपादन किया जाता है। इनकी पुष्टि से सिद्धान्तों का प्रतिपादन
होता है, इसमें निगमन चिन्तन किया जाता है। दार्शनिक शोध विधि में व्यापक
सामान्यीकरण किये जाते है जिसमें सत्य एवं मूल्यों का प्रतिस्थापन किया जाता है।’’ भिटनी ने अपनी इस परिभाषा
में दो प्रकार के शिक्षा अनुसंधानों का उल्लेख किया है-वैज्ञानिक तथा दार्शनिक।
वैज्ञानिक शोधकार्यो से नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है और दार्शनिक
शोध-कार्यों से नवीन सत्यों का प्रतिस्थापन किया जाता है।’’
2. मोनरों के अनुसार :- ‘‘शिक्षा अनुसंधान का अन्तिम
लक्ष्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना और शिक्षा के क्षेत्र में नवीन प्रक्रियाओं
का विकास करना।’’ मोनरों ने ‘शिक्षा अनुसंधान’ में नवीन सिद्धान्तों के प्रतिपादन के साथ उनकी उपयोगिता
को भी महत्व दिया। शोध निष्कार्षों की व्यावहारिक उपयोगिता ‘शिक्षा अनुसंधान’ का प्रमुख मानदण्ड माना
जाता है।
3. डब्लू0एम0 टैवर्स के अनुसार शिक्षा
अनुसंधान की परिभाषा :- ‘‘शिक्षा अनुसधान वह
प्रक्रिया है जो शैक्षिक परिस्थितियों में व्यवहार विज्ञान का विकास करती है।’’ शिक्षा अनुसंधानों का
अन्तिम लक्ष्य शिक्षण सिद्धान्तों तथा अधिनियमों का प्रतिपादन करना और शिक्षा की
प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना है।
शिक्षा अनुसंधान के उद्देश्य
शिक्षा अनुसंधान की समस्याओं
में विविधता अधिक है इसलिए इसके प्रमुख चार उद्देश्य होते हैं :
1. सैद्धान्तिक उद्देश्य :- शिक्षा अनुसंधान में
वैज्ञानिक शोध कार्यों द्वारा नये सिद्धान्तों तथा नये नियमों का प्रतिपादन किया
जाता है। इस प्रकार के शोध-कार्य व्याख्यात्मक होते है। इनके अन्तर्गत चरों के
सह-सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है। इस प्रकार के शोध कार्यों से प्राथमिक रूप
से नवीन ज्ञान की वृद्धि की जाती है।, जिनका उपयोग शिक्षा की
प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने में किया जाता है।
2. तथ्यात्मक उद्देश्य :- शिक्षा के अन्तर्गत एेि
तहासिक शोध-कार्यों द्वारा नये तथ्यों की खोज की जाती हैं इनके आधार पर वर्तमान को
समझने में सहायता मिलती है। इन उद्देश्यों की प्रकश्ति वर्णनात्मक होती है, क्योंकि तथ्यों की खोज करके, उसका अथवा घटनाओं का वर्णन
किया जाता है। नवीन तथ्यों की खोज शिक्षा-प्रक्रिया के विकास तथा सुधार में सहायक
होती है।
3. सत्यात्मक उद्देश्य :- दार्शानिक ‘शोध’ कार्यों द्वारा नवीन सत्यों
का प्रतिस्थापन किया जाता है। इनकी प्राप्ति अन्तिम प्रश्नों के उत्तरों से की
जाती है। दार्शनिक शोध-कार्यों द्वारा शिक्षा के उद्दश्यों, सिद्धान्तों तथा शिक्षण
विधियों तथा पाठ्यक्रम की रचना की जाती है। शिक्षा प्रक्रिया के अनुभवों का चिन्तन
बौद्धिक स्तर पर किया जाता है जिससे नवीन सत्यों तथा मूल्यों का प्रतिस्थापन किया
जाता है।
4. व्यावहारिक उद्देश्य :- शिक्षा अनुसंधान के
निष्कर्षों का व्यावहारिक प्रयागे होना चाहिये, परन्तु कुछ शोध-कार्यों मे
केवल उपयोगिता को ही महत्व दिया जाता है, ज्ञान के क्षेत्र से योगदान
नही होता है। इन्हे विकासात्मक अनुसंधान भी कहते है। क्रियात्मक अनुसंधान से
शिक्षा की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास किया जाता है अर्थात् इनका उद्देश्य व्यावहारिक
होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से भी इस उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है।
शिक्षा-अनुसंधान के प्रकार
शिक्षा-अनुसंधान के
उद्देश्यों से यह स्पष्ट है कि शैक्षिक अनुसंधानों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है। प्रमुख वर्गीकरण के मानदण्ड
अधोलिखित हैं :-
योगदान
की दृष्टि से
शोध-कार्यों के यागे दान की
दृष्टि से शैक्षिक-अनुसंधानों को दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-
1. मौलिक अनुसंधान :- इन शोध-कार्यों द्वारा नवीन ज्ञान की
वृद्धि की जाती है- नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन नवीन तथ्यों की
खोज, नवीन सत्यों का प्रतिस्थापन होता है। मौलिक अनुसंधानों से ज्ञान
क्षेत्र में वृद्धि की जाती है। इन्हें उद्देश्यों की दृष्टि से तीन वर्गों में
बांटा जा सकता है-
1. प्रयोगात्मक शोध-कार्यों से
नवीन सिद्धान्तों तथा नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। सर्वेक्षण-शोध भी इसी
प्रकार का योगदान करते है।
2. ऐतिहासिक शोध कार्यों से
नवीन तथ्यों की खोज की जाती है, जिनमें अतीत का अध्ययन किया जाता है और उनके आधार पर
वर्तमान को समझने का प्रयास किया जाता है।
3. दार्शनिक शोध कार्यों से
नवीन सत्यों एवं मूल्यों का प्रतिस्थापन किया जाता है। शिक्षा का सैद्धान्तिक
दार्शनिक-अनुसंधानों से विकसित किया जा सकता है।
2. क्रियात्मक अनुसंधान :- इस प्रकार के शोध-कार्यों से स्थानीय समस्याओं का
अध्ययन किया जाता है, जिससे शिक्षण की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास किया जाता है। इनसे
ज्ञान-वृद्धि नही की जाती है। इन्हें प्रयोगात्मक अनुसंधान भी कहते है।
शोध-उपागम की दृष्टि से
शोध-कार्यों में तथ्यों का अध्ययन करने के लिए दो उपागमों का प्रयोग
किया जाता है- अनुदैध्र्य उपागम तथा कटाव-उपागम।
1. अनुर्दध्र्य-उपागम :- यह शब्द वनस्पति विज्ञान से
लिया गया है जब किसी पौध का अध्ययन बीज बोने से लेकर फल आने तक किया जाता है तब
उसे अनुर्दघ्र्य-उपागम कहा जाता है। ऐतिहासिक, इकाई तथा उत्पति सम्बन्धी
अनुसंधान विधियों में इसी उपागम का प्रयोग किया जाता है।
2. कटाव-उपागम :- यह शब्द भी वनस्पति विज्ञान
का है। जब किसी पौधे के तने पत्ती या जड़ तथा अन्य किसी
अंग के स्वरूप का अध्ययन करना होता है तब किसी पौधे के उस अंग का कटाव करके अध्ययन
कर लिये जाते हैं। तब उसे कठाव-उपागम की संज्ञा दी जाती है। इसमें समय का महत्व
नही होता है। प्रयोगात्मक, तथा सर्वेक्षण विधियों में इस उपागम का प्रयोग किया जाता है।
शिक्षा-अनुसंधान के कार्य
- 1. शिक्षा अनुसंधान का प्रमुख कार्य शिक्षा की प्रक्रिया में सुधान तथा विकास करना है। यह कार्य ज्ञान के प्रसार से किया जाता है।
- 2. शिक्षा की प्रक्रिया के विकास के लिए आन्तरिक सोपान नवीन में वृद्धि करना तथा वर्तमान ज्ञान में सुधार करना है।
शैक्षिक विकास का सम्बन्ध
शिक्षा के विभिन्न पक्षों में होता है-
- 1. शिक्षा के विशिष्ट क्षेत्र में ज्ञान में वृद्धि करना, उसमें सुधार करना तथा प्रसार करना है।
- 2. शिक्षा की समस्याओं का समाधान करना, छात्रों के अधिगम में विकास करना। शिक्षण की प्रभावशाली प्रविधियों का विकास करना।
- 3. शिक्षा प्रशासन तथा शिक्षा प्रणाली में अनुसंधान प्रक्रिया द्वारा सुधार तथा विकास करना। शैक्षिक अनुसंधान प्रक्रिया द्वारा शिक्षा के सिद्धान्तों तथा अभ्यास में योगदान करना है। शिक्षा शास्त्रियों को शैक्षिक प्रक्रिया के विकास हेतु नवीन प्रविधियों के प्रयोग में ‘शिक्षा-अनुसंधान’ सहायता करती है।
शिक्षा-अनुसंधान की विशेषतायें
- 1. शोध-कार्य का मुख्य आधार शिक्षा दर्शन होता है। शिक्षा वैज्ञानिक प्रक्रिया भी दर्शन पर आधारित होती है।
- 2. शिक्षा-अनुसंधान की प्रक्रिया कल्पनाशक्ति तथा अन्तर्द्दष्टि पर आधारित होती है।
- 3. शिक्षा-अनुसंधान में साधारण अन्त:अनुसंधान उपागम का प्रयोग किया जाता है।
- 4. शिक्षा-अनुसंधान में निगमन तार्किक चिन्तन प्रक्रिया को प्रयोग किया जाता है।
- 5. शिक्षा-अनुसंधान के निष्कर्षों से शिक्षा-प्रक्रिया को उत्तम तथा प्रभावशाली बनाया जाता है।
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